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[जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला
अह सारही तो भणइ, एए भद्दा उ पाणिणो । तुज्झं विवाहकजम्मि, भोयावेउं बहुं जणं ॥१७।। सोऊण तस्स वयां, बहुपाणिविणासणं । चिन्तेइ से महापन्नो, साणुकोसे जिए हिलो ॥१८।। जइ मज्झ कारणा एए, हम्मन्ति सुबहू जिया। न मे एयं तु निस्सेसं, परलोगे भविस्सई ॥१९॥ सो कुण्डलाण जुयलं, सुत्तगं च महासयो। आभरमाणि य सवाणि, सारहिस्स पण मए ॥२०॥ मणपरिणामे य कए, देवा य जहोइयं समोइण्णा । सव्विढिीइ सपरिसा, निक्खमणं तस्स काउं जे ॥२१॥ देवमगुस्सपरिवुडो, सीयारयणं तो समारूढो । निक्खमिय वारगाओ, रेवयम्मि ठिो भगवं ॥२२।। उजाणं संपत्तो, ओइराणो उत्तमाउ सीयारो। साहस्सीइपरिवुडो, अह निक्खमइ उ चित्ताहिं ॥२३॥ अह से सुगन्धगन्धीए, तुरियं मउअकुंचिए । सयमेव लुचई केसे, पंचमुट्ठीहिं समाहिओ ।।२४। वासुदेवो य णं भणइ, लुत्तकेसं जिइन्दियं । इच्छियमणोरहं तुरियं, पावसु तं दमीसरा! ॥२५॥ नाणेगां दंसणे च, चरित्तेण तहेव य। खंतीए मुनीए, वड्डमाणोभवाहि य ॥२६॥ एवं ते रामकेसवा, दसाग य बहू जणा। अरिटुणेमि वन्दित्ता, अभिगया वारगापुरिं ॥२७॥ सोऊण रायकन्ना, पव्यजं सा जिणस्स उ । नीहासा य निराणन्दा, सोगेण उ समुच्छिया ॥२८॥ राईमई विचिन्तेइ, धिरत्थु मम जीवियं । जाऽहं तेण परिच्चत्ता, सेयं पव्वइउं मम ॥२९॥