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[जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला
एवं करेंति संबुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा। विणियति भोगेसु, जहा से नमी रायरिसि ॥६॥ त्ति बेमि
॥ नमिपव्वज्जा समत्ता ॥
॥ अह दुमपत्तय दसम अज्झयण ॥ दुमपत्तए पंडुरए हा,
निवडइ राइगणाण अञ्चए । एवं मणुयाण जीवियं,
समय गोयम ! मा पमायए ।।१॥ कुसग्गे जह ओसबिन्दुए,
थोवं चिट्टइ लम्बमाणए । एवं मणुयाण जीविय,
समयं गोयम ! मा पमायए ॥२॥ इह इत्तरियम्मि अाउए,
जीवियए बहुपञ्चवायए । विहुणाहि रयं पुरे कडं,
समयं गायम ! मा पमायए ॥३॥ दुल्लहे खलु माणुसे भवे,
चिरकालेण वि सव्वपाणिणं। गाढा य विवाग कम्मुणो,
समय गोयम ! मा पमयए ॥४॥ पुढ विकायमइगओ,
उक्कोमं जीवो उ संवसे । कालं............ 'संखाईय
समयं गोयप ! मा पमायए ॥५॥