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________________ • श्रीनन्दीसूत्र [२२५ पासइ । भावओ णं आभिणिबोहियनाणी पाएसेणं सत्रे भावे जाणइ, न पासइ। उग्गह ईहाऽवाओ, य धारणा एव हुंति चत्तारि । आभिणिबोहियनाणस्स मेयवत्थू समासेणं ॥२८॥ अत्थाणं उग्गहणम्मि उग्गहो तह विद्यालणे ईहा । ववसायम्मि प्रयाओ, धरणं पुण धारण बिन्ति ॥ २९ ॥ उग्गह इकं समय, ईहावाया मुहुत्तमद्धं तु ।। कालमसंखं संखं च धारणा होइ नायब्वा ॥ ३०॥ पुढे सुणेइ सइं, रूवं पुण पास इ अपुढे तु । गंध रसं च फासंच, बद्धपुढे वियागरे ॥ ३१॥ भासासमसेढीओ, सदं जं सुणइ मीसियं सुणइ । वीसेढी पुण सह, सुणेइ नियमा पराघाए ॥ ३२ ॥ ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा। सन्ना सई मई पन्ना, सव्वं आभिणिबोहियं ।। ३३ ॥ से तं आभिणिवोहियनाणपरोक्खं, से तं मइनाणं ।।सू० ३७॥ से किं तं सुयनाणपरोक्खं ? सुयनाणपरोक्खं चोद्दसविहं पराणत्तं तंजहा-अक्खरसुयं १ अणक्खरसुयं २ सण्णिसुयं ३ असरिणसुयं ४ सम्मसुयं ५. मिच्छसुयं ६ साइयं ७ अणाइयं ८ सपज्जवसियं ९ अपज्जवसियं १० गमियं ११ अगमियं १२ अंगपविटुं १६ अणंगपविट्ठ १४॥ सू०॥३८॥ से किं तं अक्खरसुयं ? १ अत्थाणं उग्गहणं, च उग्गहं तह वियालणं ईहं । ववसायं च प्रवायं धरणं पुण धारणं विति ॥ ॥ इति पाठान्तरगाथा ।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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