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________________ १५४ ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला एविन्दियग्गी व पगामभोइणो, न बम्भयारिस्सहियाय कस्सई || ११|| विवित्तसेजासणजन्तियाणं, ओमासणाणं दमिइन्दियाणं । न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं, पराओ वाहिरिवोसहेहिं ॥ १२ ॥ जहा विरलावसहस्त मूले, न मूलगाणं वसही पसत्था । एमेव इत्थीनिलयस्स मज्भे, न बम्भयारिस्स खमो निवासो ||१३|| न रूवलावरणविलासहासं, न जंपियं इंगियपेहियं वा । इत्थीण चिरांसि निवेसहसा, दडुं ववस्से समणे तवस्सी || १४ || असणं चेव श्रपत्थणं च, श्रचिन्तरां चैव कित्तणं च । इत्थीजणस्सारियज्भाणजुग्गं, हियं सया बम्भवए रयाणं ||१५|| कामं तु देवीहि विभूसियाहिं, न चाइया खोभइउं तिगुत्ता । तहा वि एगन्तहियं ति नच्चा, विवित्तवासो मुणिणं पत्थो ||१६|| मोक्खाभिकखिस्स उ माणवरुस, संसारभीरुस्स ठियस्स धम्मे । मेवारिसं दुत्तरमत्थि लोए, जहिस्थिओ बालमणोहसओ ॥१७॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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