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________________ पुच्छिरसुणं] दाणाण सेटुं अभयप्पयाणं, सच्चेसु वा अणवजं वयंति । तवेसु वा उत्तम बंभचेरं, लोगुत्तमे समणे नायपुत्ते ॥२३॥ ठिईण सेट्ठा लवसत्तमा वा, सभा सुहम्मा व सभाण सेट्ठा । निव्वाणसेट्ठा जह सवधम्मा,न नायपुत्ता परमत्थिनाणी ॥२४॥ पुढोवमे धुणइ विगयगेही, न सण्णिहिं कुम्वइ आसुपन्ने । तरिउ समुदं च महाभवोघं, अभयंकरे वीर अणंतचक्खू॥२५॥ कोहं च माणं च तहेव मायं, लोभं चउत्थं अज्झत्यदोसा। एयाणि वंता अरहा महेसी, ण कुव्वा पाव ण कारवेइ ॥२६।। किरियाकिरिय वेणइयाणुवाय, अण्णाणियाणं पडियच्च ठाएं । से सव्ववायं इइ वेयइत्ता, उवट्टिए संजमदीहरायं ॥२७॥ से वारिया इत्थी सराइभत्त, उवहाणवं दुक्खखयट्टयाए । लोगं विदित्ता प्रारं परं च, सव्वं पभू वारिय सधवारं ॥२८॥ सोचा य धम्मं अरहंतभासियं समाहियं अट्ठपदोवसुद्धं । तंसदहाणा य जणा प्रणाऊ, इंदा व देवाहिव आगमिस्संति॥२९॥ त्ति बेमि॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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