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________________ श्रीअणुत्तरोववाइयसूत्र ] | २५१ जाली अणगारे कालगए कहिं गए, कहिं उववरणे ? । एवं खलु गोयमा ! मम अंतेवासी तहेव जहा खंदयस्स जाव कालगए उड्ढं चंदिमाइ जाव विजए विमाणे देवत्ताए उववण्णे ।। १५॥ जालिस्म णं भन्ते ! देवस्त केवइयं कालं ठिई पराणत्ता ? गोयमा ! बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १६॥ से ण भंते ! तानो देवलोगाओ आउक्खएण भवक्खएणं ठिईक्खएणं कहि गच्छिहिइ कहिं उववजहिइ ? । गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सइ ॥ १७ ॥ एवं खलु जम्बू ! समणेण जाय संपत्तेण अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पराणत्ते । एवं सेसाणवि अटण्हं भाणियव्वं । नवरं छ धारिणिसुआ वेहल्लवेहायसा चेल्लणाए । अभयस्स नाण-रायगिहे नगरे, सेणिए राया, नंदा देवी माया, सेसे तहेव । आइल्लाणं पंचरहं सोलस वासाइं सामरणपरियाओ, तिराहं बारसवासाइं, दोराहे पंच वासाइं। आइल्लाणं पंचराहं अणुपुबीए उववानो; विजए विजयंते जयंते अपराजिए सव्वट्ठसिद्धे । दीहदंते सव्वट्ठसिद्ध, अणुक्कमेणं सेसा । अभओ विजये । सेसं जहा पढमे । एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरेववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स अयमटे पराणत्ते । ॥ इति पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा समत्ता ॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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