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[ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला.
सिद्धाइगुणजोगेसु, तेत्तीसासायणासु य । जे भिक्खू जयई निञ्च, से न अच्छइ मण्डले ॥२०॥ इय एएसु ठाणेसु, जे भिक जयई सया। खिप्पं सो सम्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिओ।।२१|| त्ति बेमि
॥ चरणविही समत्ता ॥३१॥ ॥ अह पमायट्ठाणं बत्तीसइमं अज्झयणं ॥ अञ्चन्तकालस्स समूलगस्स,
सव्वस्स दुक्खस्स उ जो पमोक्खो। तंभासओ मे पडिपुराणचित्ता,
सुणेह एगन्तहियं हियत्थं ॥१॥ नाणस्त 'सव्वस्स पगासणाए,
अन्नाणमोहस्स विवज्जणाए । रागस्स दोसस्स य संखएणं,
एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥२॥ तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा,
विवज्जणा बालजणस्स दूरा। सज्झायएगन्तनिसेवणा य,
सुत्तत्थसंचिन्तणया धिई य ॥३॥ आहारमिच्छे मियमेसणिज्जं,
सहायमिच्छे निउणत्थबुद्धि निकेय मिच्छेन्ज विवेगजोग्गं,
समाहिकामे समणे तवस्सी ॥४॥ न वा लभेजा निउणं सहाय
गुणाहियं वा गुणो समं वा । १. सन्चस्स । ....