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________________ १५२] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला. सिद्धाइगुणजोगेसु, तेत्तीसासायणासु य । जे भिक्खू जयई निञ्च, से न अच्छइ मण्डले ॥२०॥ इय एएसु ठाणेसु, जे भिक जयई सया। खिप्पं सो सम्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिओ।।२१|| त्ति बेमि ॥ चरणविही समत्ता ॥३१॥ ॥ अह पमायट्ठाणं बत्तीसइमं अज्झयणं ॥ अञ्चन्तकालस्स समूलगस्स, सव्वस्स दुक्खस्स उ जो पमोक्खो। तंभासओ मे पडिपुराणचित्ता, सुणेह एगन्तहियं हियत्थं ॥१॥ नाणस्त 'सव्वस्स पगासणाए, अन्नाणमोहस्स विवज्जणाए । रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥२॥ तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा, विवज्जणा बालजणस्स दूरा। सज्झायएगन्तनिसेवणा य, सुत्तत्थसंचिन्तणया धिई य ॥३॥ आहारमिच्छे मियमेसणिज्जं, सहायमिच्छे निउणत्थबुद्धि निकेय मिच्छेन्ज विवेगजोग्गं, समाहिकामे समणे तवस्सी ॥४॥ न वा लभेजा निउणं सहाय गुणाहियं वा गुणो समं वा । १. सन्चस्स । ....
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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