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________________ १३०] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला पडिकमिन निस्सल्लो, वन्दित्ताण तो गुरुं । काउस्सग्गं तो कुजा, सचदुक्ख विमुक्खणं ।।५।। किं तवं पडिवजामि, एवं तत्थ विचिन्तए । काउस्सग्गं तु पारित्ता, 'बन्दए य तमो गुरुं ॥५१॥ पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तो गुरुं । तवं तु पडिवजेजा, कुजा सिद्धाण संथवं ॥५२।। एसा सामायारी, समासेण वियाहिया। अं चरित्ता बहू जीवा, तिराणा संसारसागरं ॥५३॥ ॥सामायारी समत्ता ॥२६॥ ॥ अह खलंकिज्ज सत्तवीसइमं अज्झयणं ।। थेरे गणहरे गग्गे, मुणी आसि विसारए । आइएणे गणिभावम्मि, समाहिं पडिसंधए ॥१॥ वहणे वह माणस्स, कंतारं अइवत्तए । जोगे वह माणस्स, संसारो अइवत्तए ॥२॥ खलुंके जो उ जोएइ, विहम्माणो किलिस्सइ । असमाहिं य वेएइ, तोत्तो से य भजइ ॥३॥ एगं उसइ पुच्छम्मि, एगं विन्धइ ऽभिक्खणं । एगो भंजइ समिल, एगो उपहपट्रिो ॥४॥ एगो पडरपासे, निवेखाइ निवज्जइ । उक्कुद्दइ उप्फिडइ, सढे बालगवी वए ॥५॥ माई मुद्धेण पडइ, कुद्धे गच्छइ पडिप्पई। मयलक्खेण चिट्टइ, वेगेण य पहावइ ॥६॥ छिन्नाले छिन्दइ सिल्लिं, दुद्दन्तो भंजए जुगं । खेत्रि य सुस्सुयाइत्ता, उज्जहित्ता पलायए ॥७॥ १. करिजा जिणसंथवं । ॥५॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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