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________________ १३८] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला घयछिदाणि पिहेइ । पिहियवयछिद्दे पुण जीवे निरुद्धासवे असबलचरित्ते अट्ठसु पवयणमायासु उवउत्ते अपुहत्ते 'सुप्पणिहिं दिए विहरइ ॥११॥ काउसग्गेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? काउसग्गेणं तीयपडुप्पन्नं पायच्छित्तं विसोहेइ । विसुद्धपायच्छिते य जीवे निव्वुयहियए अोहरियभरुव्व भारवहे पसत्यज्झाणोवगए सुहं सुहेणं विहरइ ॥१२॥ ___ पञ्चक्खाणेणं भन्ते! जीवे किं जणयइ ? पञ्चक्खाणेणं आसवदाराई निरुम्भइ । पञ्चक्खाणेणं इच्छानिरोहं जणयइ । इच्छानिरोहं गए य एवं जीवे सव्वदव्वेसु विणीयतराहे सीइभूए विहरइ ॥१३॥ ___ थवथुइमंगलेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? थ० नाणदंसणचरित्तबोहिलाभं जणयह । नाणदंसणचरित्तबोहिलाभसंपन्ने य णं जीवे अन्तकिरियं कप्पविमाणोववत्तिगं पाराहणं पाराहेइ ॥१४॥ कालपडिलेहणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? का० णाणावरणिजं कम्मं खवेइ ॥१५।। पायच्छित्तकरणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? पा० पावविस्रोहिं जणयइ, निरइयारे वावि भवइ । सम्मं च णं पायच्छित्तं पडिवजमाणे मग्गं च मग्गफलं च विसोहेइ, आयारं च आयारफलं च पाराहेइ ॥१६॥ खमावणयाए र भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? ख० पल्हायणभावं जणयइ । पल्हायणभावमुबगए य सनपाणभूय १. सुष्पाणिहिर । २. घरका ।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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