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________________ ६८ [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला जइ तं सि भोगे चइउं असत्तो, _ 'अज्जाइ कम्माइ करेहि रायं ! धम्मे ठिओ सव्वपयाणुकम्पी, तो होहिसि देवो इअो विउब्बी ॥३२॥ न तुझ भोगे चाऊण बुद्धी, गिद्धो सि प्रारभ्भपरिग्गहेसु । मोहं कओ एत्तिउ विप्पलावो, गच्छामि रायं ! आमन्तिओसि ॥३३॥ पंचालराया वि य धम्भदत्तो, साहुस्स तस्स वयणं अकाउं । अणुत्तरे भुंजिय कामभोगे, अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो ॥३४॥ चित्तो वि कामेहि विरत्तकामो, उदग्गचारित्ततवो महेसी। अणुत्तरं संजमं पालइत्ता, अणुत्तरं सिद्धिगई गो ॥३५॥ त्ति बेमि ॥ चित्तसम्भूइज्ज समत्तं ॥ ॥ अह उसुयारिज्जं चोदहमं अज्झयणं ॥ देवा भवित्ताण पुरे भवम्मि, केइ चुया एगविमाणवासी। पुरे पुराणे उसुयारनामे, खाए समिद्धे सुरलोगरम्मे ॥१॥ सकम्मसेसेण पुराकएणं, कुलेसुदग्गेसु य ते पसूया।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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