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[जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला
जइ तं सि भोगे चइउं असत्तो,
_ 'अज्जाइ कम्माइ करेहि रायं ! धम्मे ठिओ सव्वपयाणुकम्पी,
तो होहिसि देवो इअो विउब्बी ॥३२॥ न तुझ भोगे चाऊण बुद्धी,
गिद्धो सि प्रारभ्भपरिग्गहेसु । मोहं कओ एत्तिउ विप्पलावो,
गच्छामि रायं ! आमन्तिओसि ॥३३॥ पंचालराया वि य धम्भदत्तो,
साहुस्स तस्स वयणं अकाउं । अणुत्तरे भुंजिय कामभोगे,
अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो ॥३४॥ चित्तो वि कामेहि विरत्तकामो,
उदग्गचारित्ततवो महेसी। अणुत्तरं संजमं पालइत्ता,
अणुत्तरं सिद्धिगई गो ॥३५॥ त्ति बेमि
॥ चित्तसम्भूइज्ज समत्तं ॥ ॥ अह उसुयारिज्जं चोदहमं अज्झयणं ॥ देवा भवित्ताण पुरे भवम्मि,
केइ चुया एगविमाणवासी। पुरे पुराणे उसुयारनामे,
खाए समिद्धे सुरलोगरम्मे ॥१॥ सकम्मसेसेण पुराकएणं,
कुलेसुदग्गेसु य ते पसूया।