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________________ श्रीउतराध्ययन सूत्र ] पंचिन्दियतिरिक्खाओ, दुविहा संमुच्छतिरिक्खाओ, गब्भवक्कन्तिया दुहि ते भवेतिविहा, जलयरा थलयरा तहा । नहरा य बोधव्वा, तेसिं भेए सुह मे ॥ १७२ ॥ मच्छा य कच्छभा य, गाहा य मगरा तहा । सुंसुमारा य बोधव्वा, पंचहा जलयराहिया || १७३ || लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया | एतो कालविभागं तु, वोच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ १७४॥ संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया विय । ठिइं पडुच्च साईया, सपजवसिया विय ॥ १७५ ॥ एगा य पुव्वकोडी, उक्कोसेण वियाहिया । उठिई जलयराणं, अन्तोमुहुरां जहन्निया ॥ १७६ ॥ पुव्त्रकोडिहरां तु, उक्कोसेण वियाहिया । कायटिई जलयराणं श्रन्तोमुडुतं जहन्नयं ॥ १७७ || अणन्तकालमुक्कसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्म सकाए, जलयराणं तु अन्तरं ॥ १७८ ॥ ( एएसिं वरण चैव गन्धओ रसफासो । संठा व विहाणाई सहस्सओ ॥ ) चउपयाय परिसप्पा, दुविहा थलयरा भवे । च उपया चउविहा उ, ते मे कित्तयत्रो सुरण ॥ १७६ ॥ एगखुरा दुखुरा चेव, गण्डीश्य सहप्पया । हयमाइ गोण माइगयं माइसी हमाइणेो ॥ १८०॥ " ते वियाहिया । [ १६३ तहा ।।१७१।।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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