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________________ १९४] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला भुओरगपरिसप्पा य, परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई गहिमाई य, एकेकाणेगहा भवे ॥१८१॥ लोएगदेसे ते सत्रे, न सम्वत्थ वियाहिया। एत्तो कालविभाग तु, वोच्छं तेसिं च उविहं ॥१८२।। संतई पप्प ऽणाईया, अपज वसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपजवसियावि य ॥१८॥ पलिअोवमाइं तिगिण उ, उक्को मेण विवाहिया । आउठिई थलयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥१८॥ पलिओवमाइं तिगिण उ, उक्को सेण वियाहिया । काय ठिई थलयराणं अन्तोमुहत्तं जहनिया ॥१८५॥ कालमणन्त मुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, थलयराणं तु अन्तरं ॥१८६।। चम्मे उ लोमपक्खी य, तइया समुग्गपक्खिया । विययपक्खी य बोधवा, पक्विणो य चउबिहा ॥१८॥ लोगेगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, वोच्छ तेसिं चउबिहं ॥१८८।। संतई पप्प ऽणाईया, अपजवसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपजवसिय वि य ॥१८९।। पलिअोवमस्स भागो, असंखेजइमो भवे । आउठिई खहयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥१६०॥ असंखभाग पलियस्स, उक्कोसेण उ साहिया । पुषकोडीपुहत्तेणं, अन्तोमुहत्तं जहनिया ॥१६१॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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