SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीश्रणुत्तरोववाइयसूत्र ] [ २५५ तर से धरणे अणगारे, जं चैव दिवस मुंडे भवित्ता जाव पव्वइए तं चेव दिवसं समगं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी एवं खलु इच्छामि गं भन्ते ! तुभेहिं अब्भरपुरणाए समाणे जावजीवाए छटुंछट्ठे अणिक्खित्तें आयंबिल - परिग्गहिएं तवोकम्में अपां भावेमाणे विहरित्तए, छट्ठस्सवि य गं पारणगंसि कप मे श्रयंबिलं पडिग्गहितए, गो चेव णं णायंबिलं, तंपि य संसद्वेग णो चेव गं संसद्वेग तं पि य ग उज्झियधम्यं णो चेवं श्रणुज्भिवधम्मियं तंपि य ग जं अने बहवे समणमाहरा अतिहि- किवण - वणिमगा गावखति । श्रहासुहं देवापिया ! मा पडिबंधं करेह || १० | 9 तप से धरणे अणगारे समणेां भगवया महावीरेां अब्भणुण्णायसमाणे हट्ट-तुट्ठ जावजीवाए छट्ठ-छट्टेणं अणिक्खिणं तवोकम्मे अप्पा भावेमाणे विहरइ ॥ ११ ॥ तएां से धरणे अणगारे पढम - छुट्टख मणं - पारयसि पढमाए पोरिसीए सभायं करेति जहा गोयमस्वामी तहेव आपुच्छति जाव जेणेव काकंदी ायरी तेणेव उवागच्छइ २ ता काकंदीए नयरीए उच्चनीय जाव अडमाणे आयंबिलं जाव नावखति ॥ १२ ॥ तसे धरणे अणगारे ताए श्रभुजताए पयत्ताए पग्गहियाए एसणाए एसमा जइ भत्तं लभइ तो पाां ण लभइ, ग्रह पा लभइ तो भत्तं ए लभइ ॥ १३ ॥ तर धन्न अणगारे अदी अधिमणे अकलुसे अविसादी अपरितंत जोगी जयणघडण - जोग-चरिते अहापजतं समुदाणं
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy