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श्रीश्रणुत्तरोववाइयसूत्र ]
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तर से धरणे अणगारे, जं चैव दिवस मुंडे भवित्ता जाव पव्वइए तं चेव दिवसं समगं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी एवं खलु इच्छामि गं भन्ते ! तुभेहिं अब्भरपुरणाए समाणे जावजीवाए छटुंछट्ठे अणिक्खित्तें आयंबिल - परिग्गहिएं तवोकम्में अपां भावेमाणे विहरित्तए, छट्ठस्सवि य गं पारणगंसि कप मे श्रयंबिलं पडिग्गहितए, गो चेव णं णायंबिलं, तंपि य संसद्वेग णो चेव गं संसद्वेग तं पि य ग उज्झियधम्यं णो चेवं श्रणुज्भिवधम्मियं तंपि य ग जं अने बहवे समणमाहरा अतिहि- किवण - वणिमगा गावखति । श्रहासुहं देवापिया ! मा पडिबंधं करेह || १० |
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तप से धरणे अणगारे समणेां भगवया महावीरेां अब्भणुण्णायसमाणे हट्ट-तुट्ठ जावजीवाए छट्ठ-छट्टेणं अणिक्खिणं तवोकम्मे अप्पा भावेमाणे विहरइ ॥ ११ ॥
तएां से धरणे अणगारे पढम - छुट्टख मणं - पारयसि पढमाए पोरिसीए सभायं करेति जहा गोयमस्वामी तहेव आपुच्छति जाव जेणेव काकंदी ायरी तेणेव उवागच्छइ २ ता काकंदीए नयरीए उच्चनीय जाव अडमाणे आयंबिलं जाव नावखति ॥ १२ ॥
तसे धरणे अणगारे ताए श्रभुजताए पयत्ताए पग्गहियाए एसणाए एसमा जइ भत्तं लभइ तो पाां ण लभइ, ग्रह पा लभइ तो भत्तं ए लभइ ॥ १३ ॥
तर धन्न अणगारे अदी अधिमणे अकलुसे अविसादी अपरितंत जोगी जयणघडण - जोग-चरिते अहापजतं समुदाणं