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जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला
अज्झयण -२
एवायरिओ सुयसीलबुद्धिए
विरायई सुरमज्झे व इंदो ॥ १४ ॥ जहा ससी कोमुइजोगजुत्तो
नक्वत्ततारागणपरिवुडप्पा । खे सोहइ विमले अब्भमुक्के
एवं गणी सोहइ भिक्खुमज्झे ॥ १५ ॥ महागरा आयरिया महेसी
समाहिजोगे सुयसीलवुद्धिए । संपाघिउकामे अणुत्तराई
आराहए तोसए धम्मकामी ॥ १६ ॥ सोच्चाण मेहावि सुभासियाई
सुस्सूसए पायरियऽप्पमत्तो। आराहइत्ताण गुरणे अणेगे
सो पावई सिद्धिमणुत्तरं ॥ १७ ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ णवमअज्झयणस्स विणयसमाहीए पढमो उद्देसो समत्तो॥
॥णपममझयणं-बीओ उद्देसो॥ मूलाओ खंधष्पभवो दुमस्स
खंधाउ पच्छा समुवेति साहा। साहप्पसाहा विरुहंति पत्ता
तो से पुप्फ च फलं रसोय ॥१॥ एवं धम्मस्स विणओ मूलं परमो से मोक्खो। जेण कित्तिं सुयं सिग्धं निस्सेसं चाभिगच्छइ ॥२॥ जे य चंडे मिए थद्ध दुव्वाई नियडी सढे। वुज्झइ से अविणीयप्पा कटुं सोयगय जहा ॥३॥ विणयं पि जो उवाएण चोइओ कुप्पइ नरो। . दिव्वं सो सिरिमेज्जन्ति दंडेण पडिसेहए ॥४॥