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अज्झयण ५-१
दसवेआलियसुतं
तारिसं भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥४८॥ असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा पुराणट्ठा पगडं इमं ॥ ४६॥ तं भवे भत्तपावं तु संजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥५०॥ असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा वणिमट्ठा पगडं इमं ॥ ५१॥ तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ५२ ॥ असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा समणट्रा पगडं इमं ॥ ५३॥ त भवे भत्तपारणं तु संजयारण आकप्पियं । दितिय पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ५४॥ उद्देसियं कीयगड प्रइकम्मं च पाहडं । अज्झोयरपामिञ्च मीसजायं च वज्जए ॥ ५५ ॥ उग्गम से अ पुच्छेज्जा कस्सट्टा केण वा कडं । सोचा निस्संकियं सुद्धं पडिगाहेज संजए ॥ ५६ ॥ असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। पुष्फेसु होज उम्मीसं बीएसु हरिएमु वा ॥ ५७ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । दितिय पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ५८ ॥ असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। उदगंमि होज निक्खित्तं उत्तिंगपणगेसु वा ॥ ५६ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु संनयाण अकप्पियं । दितिय पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ६० ॥