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________________ श्रीउतराध्ययन सूत्र ] लेसाहिं सव्वाहिं, पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उवाओ, परे भवे अस्थि जीवस्स ||५८ || साहिं सम्वाहिं, चरिमे समयं मि परिण्याहिं तु । न हु कस्सइ उवत्राओ, परे भवे होइ जीवस्स ॥ ५६ ॥ अन्तमुहुत्तति गर, अन्तमुहुत्तग्मि सेसए चेव । स हि परिणयाहिं, जीवा गच्छन्ति परलोयं ॥ ६० ॥ तम्हा यासि लेसागं, अणुभावं वियाणिया । अपसत्याओ वजित्ता, पलत्थाओऽ हिट्ठिए मुणी ॥ ६१ ॥ त्ति बेमि || सज्यं समत्तं ||३४|| ॥ श्रगारिज्जं ग्राम पंचतीसइमं अभयं ॥ सुरोह मे एगग्गमणा, मग्गं 'बुद्धे हि देसियं । जमायरन्तो भिक्खू, दुक्खान्तकरे भवे ॥१॥ गिहबासं परिच्चज, पवज्जामस्सिए मुखी । इमे संगे विया जि, जेहिं सज्जन्ति माणवा ||२|| तहेव हिंसं अलियं, चोजं ग्रवम्भसेवणं । इच्छाकामं च लोभ च, संजत्रो परिवजए ॥३॥ मणोहरं चित्तघरं, मल्ल धूवेण वासियं । सकवाडं पण्डुरुल्लोयं, मणसावि न पत्थर ||४|| इन्दियाणि भिक्खुस्स तारिसम्मि उवस्सए । दुक्कराई निवारेउं, कामरागविवडणे ||५|| सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व इक्कओ । पइरिक्के परकडे वा, वासं तत्थाभिरोयए ॥ ६ ॥ फासुभि अणावा, इत्थी हिं अभिदुए। तत्थ संकपए वासं, भिक्खू परमसंजए ||७| १. सन्दे० । O [ १७७
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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