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श्रीनन्दी सूत्र ]
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धम्मक हाओ, इहलोइय पर लोइया इढिविसेसा, भोगपरिचागा. पव्वज्जाओ. परिआगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, पडि माओ, उवसग्गा, संलेह णाश्रो, भत्तपञ्चकख गाई, पाओचगमणाई, अणुत्तरोवव इयत्ते उववत्ती, सुकुल पश्च्चाय। ईओ, पुण्व हिलाभा, अंत किरियायो, श्राघविजंति । अनुत्तरावचाइयदसासु गं परित्ता वायणा, संखेजा श्रणुओोगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेजा ओ निज्जुत्तीओ, संखेजाओ संग्रहणी, संखे जाओ पडिवत्तीओ, से गं अंगट्टयाए नवमे अंगे, एगे सुयक्खंधे. तिन्नि वग्गा, तिम्नि उद्देसणकाला, तिन्नि समुद्दे सणकाला, संखेजाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्ज ( अक्खरा, अरांता गमा, अरांता पज्जवा, परित्ता तसा, अांता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पराविज्जंति, परुविज्जति, दंसिज्अंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति से एवं श्राया एवं नाया, एवं विराणाया, एवं करणकरणपरूवणा आघविजह से त्तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ६ ॥ सूत्र ॥ ५४ ॥
से किं तं परहावागरणाई ? परहा वागरणेसु णं श्रट्टुत्तरं परिणयं श्रट्टुत्तरं अपसि सयं, अट्टुत्तरं पसिगापसिरासयं तं जहा - अंगुटुपसिगाई, बाहुपसिगाई, अहाग पसिगाई, अने विविचित्त विजाइसया, नागसुवरणेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जति । पण्हावागरणारी परित्ता वायणा, संखेजा अणु
गदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेज ओ निज्जुतीओ, संखे जाओ संग्रहणीश्र, संखेजा ओ पडिवत्तीओ से ग अंगट्टयाए दसमे अंगे; एगे सुयक्खंधे परणयालीसं अज्झयणा, पण्यालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्दे सणकाला, संखेज' इं पयसहस्साइं पयग्गेणं; संखेज' अक्खरा, अगता गमा
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