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________________ श्रीनन्दी सूत्र ] [ २३७ धम्मक हाओ, इहलोइय पर लोइया इढिविसेसा, भोगपरिचागा. पव्वज्जाओ. परिआगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, पडि माओ, उवसग्गा, संलेह णाश्रो, भत्तपञ्चकख गाई, पाओचगमणाई, अणुत्तरोवव इयत्ते उववत्ती, सुकुल पश्च्चाय। ईओ, पुण्व हिलाभा, अंत किरियायो, श्राघविजंति । अनुत्तरावचाइयदसासु गं परित्ता वायणा, संखेजा श्रणुओोगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेजा ओ निज्जुत्तीओ, संखेजाओ संग्रहणी, संखे जाओ पडिवत्तीओ, से गं अंगट्टयाए नवमे अंगे, एगे सुयक्खंधे. तिन्नि वग्गा, तिम्नि उद्देसणकाला, तिन्नि समुद्दे सणकाला, संखेजाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्ज ( अक्खरा, अरांता गमा, अरांता पज्जवा, परित्ता तसा, अांता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पराविज्जंति, परुविज्जति, दंसिज्अंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति से एवं श्राया एवं नाया, एवं विराणाया, एवं करणकरणपरूवणा आघविजह से त्तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ६ ॥ सूत्र ॥ ५४ ॥ से किं तं परहावागरणाई ? परहा वागरणेसु णं श्रट्टुत्तरं परिणयं श्रट्टुत्तरं अपसि सयं, अट्टुत्तरं पसिगापसिरासयं तं जहा - अंगुटुपसिगाई, बाहुपसिगाई, अहाग पसिगाई, अने विविचित्त विजाइसया, नागसुवरणेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जति । पण्हावागरणारी परित्ता वायणा, संखेजा अणु गदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेज ओ निज्जुतीओ, संखे जाओ संग्रहणीश्र, संखेजा ओ पडिवत्तीओ से ग अंगट्टयाए दसमे अंगे; एगे सुयक्खंधे परणयालीसं अज्झयणा, पण्यालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्दे सणकाला, संखेज' इं पयसहस्साइं पयग्गेणं; संखेज' अक्खरा, अगता गमा "
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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