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[जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला
अणच्चावियं अवलियं, अणाणुवन्धिनमोसलिं चेव । छप्पुरिमा नव खोडा, पाणीपाणिविसोहणं । २५॥ प्रारभडा सम्प्रद्दा, वजेयवा य मोसली तइया । पप्फोडणा चउत्थी, विक्खित्ता वेइया छट्टी ॥२६॥ पसिढिलपलम्बलोला, एगा मोसा अणेगरूवधुणा । कुणइ पमाणिपमाय, संकियगणणोवगं कुजा ॥२७॥ अणूणाइरित्तपडिलेहा, अविवञ्चासा तहेव य । पढम पयं पसत्थं, सेसाणि य अप्पसत्थाई ॥२८॥ पडिलेहणं कुणन्तो, मिहो कहं कुणइ जणवयकहं वा । देह व पश्चक्खाणं, वाएइ सयं पडिच्छइ वा ॥२६॥ पुढवी आउक्काए, तेऊ-वाऊ-वणस्सइ-तसाणं । पडिलेहणापमत्तो, छराह पि विराहो होइ ॥३०॥ पुढवी आउकाए, तेऊ वाऊ वणस्सइ-तसा । पडिलेहणााउत्तो, छरहं संरक्खो होइ ।।३।। तइयाए पोरिसीए, भत्तं पाणं गवेसए । छराहं अन्नयरागम्मि, कारणम्मि समुट्ठिए ॥३२॥ वेयणवेयावश्चे, इरियट्ठाए य संजमट्ठाए । तह पाणवत्तियाए, छटुं पुण धम्मचिन्ताए ॥३३॥ निग्गन्थो धिइमन्तो, निग्गन्थी वि न करेज छंहिं चेव । ठाणेहिं उ इमेहिं, अणइक्कमणाइ से होइ ॥३४||
आर्यके उवसग्गे, तितिक्खया बम्भचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहेउं, सरीर वोच्छेयणट्ठाए ॥३५॥ अवसेसं भंडगं गिज्झ, चक्खुमा पडिलेहए । परमद्धजेोयणाओ, विहार विहरण मुणी ॥३६।। घउत्थीए पोरिसीए, निक्खिवित्ताण भायणं । सज्झायं तो कुजा, सम्वभावविभावणं ॥३७॥