SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] जर मे न दाहित्थ श्रहेसणिजं, किमज जन्नाग लहित्थ लाई ||१७| के इत्थ खत्ता उवजोइया वा, अज्झावया वा सह खण्डिएहिं । एयं खु दण्डे 'फलएण इन्ता, कण्ठमि घे तूण खलेज जो गं ॥ १८ ॥ अज्झावयाणं वयणं सुणेत्ता, उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा । दण्डेहि वित्ते हि कसेहि चेव, [ ५६ समागया तं इसि तालयन्ति ॥ १९ ॥ रन्नो तहिं कोसलियस्य धूया, भद्दत्ति नामेरा अणिन्दियंगी । तं पासिया संजयहम्ममाणं, कुद्धे कुमारे परिनिव्ववेइ ॥ २० ॥ देवाभिगेण निश्रोइए, दिन्ना मुरन्ना मणसा न भाया । मरिन्ददेविन्द भिवन्दिए, जे म्हि वंता इसिणा स एसो ॥ २१ ॥ एसो इ सो उग्गतवो महत्पा जिइन्दिओ संजश्रो बम्भयारी । जो मे तया नेच्छइ दिजमाणि, पिउला सयं कोस लिएण रना ||२२|| मह जसो एस महाणुभागो, घोर घोरपरक्कमो य । १. फले ।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy