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________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१७५ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दोराणुदही पलियमसंखभागमभहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा तेउलेसाए । ३७।। मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस होन्ति य सागरा मुहुत्तहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा पम्हलेसाए ॥३८|| मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्या सुकलेसाए ॥३६॥ एसा खलु लेसाणं, अोहेण ठिई उ वरिणया होइ । चउमु वि गईसु एत्तो, लेसाण ठिई तु वोच्छामि ॥४०॥ दस वाससहस्लाई, काऊए ठिई जहनिया होइ । तिराणुदही पलिग्रोवम, असंखभागं च उक्कोसा ॥४॥ तिगणुदही पलिग्रोवममसंखभागो जहन्नण नीलठिई। दस उदही पलिओवमअसंखभागं च उकोसा ॥४२॥ दसउदही पलिअोवमासंखभागं जहनिया होइ। तेत्तीससागराइं उक्कोसा, होइ किरहार लेसाए ॥४३। एला नेरइयाणां, लेसाण ठिई उ वरिणया होइ । तेण परं वोच्छामि, तिरियमणुस्साण देवाणं ॥४४|| . अन्तोमुत्तमद्धं, लेसाण ठिई जहिं जहिं जाउ। तिरियाण नराणां वा, वजित्ता केवलं लेसं । ४५।। मुहुत्तद्धं तु जहन्ना उक्कोसा होइ पुव्वकोडीओ। नवहि वरिसेहि ऊणा, नायव्या सुक्कले माप ॥४६॥ एसा तिरियनराणां, लेसारण ठिई उ वरिणया होइ । तेण परं वोच्छामि, लेलाण ठिई उ देवाणं ॥४७॥ दस वाससहस्साई, किरहाए ठिई जहनिया होइ।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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