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________________ श्री अनुत्तरोववाइयदशांग सूत्रम् तेणं कालेणं, तेणं समएणं, रायगिहेणामणयरे होत्था, सेणियनामहराया होत्था, चेलणा देवीए गुरणसिलए चेहए वरणको ॥ १ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, अज-सुहम्मस्स समोसरणं, परिसा णिग्गया धम्प्रकहिओ परिसा पडिगया ॥२।। जंबू जाव पज़्जुवासइ एवं वयासी-जहणं भन्ते! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्त अंतगडदसाणं अयम? पण्णते; नवमस्स णं भन्ते ! अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे परणते? ॥ ३॥ तएणं से सुहम्मे अणगारे, जम्बू अणगारं एवं धयासी-एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तिण्णि वग्गा परणत्ता ॥४॥ जाणं भन्ते ! समणेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तो वग्गा पराणत्ता, पढमस्स गं भन्ते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव संपतेरणं कइ अज्झयणा पराणत्ता?॥५।। एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अगुत्तरोवाइय
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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