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________________ अज्झयण १० दसवेलियसुतं भयभैरवसद्द सप्पहासे समसुहदुक्खसहे य जे स भिक्नु ॥ ११ ॥ पडिमं पडिवजिया मलाणे नो भीए भयभेरवाई दिस्स । विविध गुणतवोरए य निश्चं न सरीरं चाभिकखइ जे स भिक्खु ॥ १२ ॥ असई वोसट्टचत्त देहे कुठे व हए व लूसिए वा । पुढविसमे मुणी हवेजा अनियाणे को उहले य जे स भिक्खू ॥ १३ ॥ अभिभूय कारण परीसहाई समुद्धरे जाइपहाउ अप्पयं । विइत्त जाइमरणं महब्भयं तवे रए सामणिए जे स भिक्खू ॥ १४ ॥ हत्थसंजए पाय संजए 'वायसंजए संजइंदिए । अज्झप्परए सुसमाहियप्पा सुत्तत्थं च वियागह जे स भिक्खु ।। १५ ।। उवहिम्मि असुछिए अगिद्धे अन्नायउच्छं पुलनिप्पुलाए । safanaसन्निहिश्रो विरए सव्वसंगावगए य जे स भिक्खू || १६ ॥ अलोल भिक्खू न रसेसु गिद्धे उँछ चरे जीविय नाभिकखी । इढिं च सकारण पूयणं च वर ठियप्पा अणिहे जे स भिक्खू ॥ १७ ॥ ५३
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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