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. जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला
न परं वज्जासि अयं कुसीले जेणन्नो कुप्पेज न तं वरजा । जाणिय पंत्तयं पुराणपावं
ताणं न समुकसे जे स भिक्खू ॥ १८ ॥ न जाइमत्त न य रूवमत्ते
न लाभमन्ते न सुरण मत्ते । मयाणि सव्वाणि विवज्जयंता धम्मज्भाणए य जे स भिक्खू ।। १६ ॥ पवेयर अपयं महामुजी
धम्मे ठश्रो ठावयइ परं पि । निक्वम्म वज्जेज्ज कुसील लिंगं
न यावि हासंकुह जे स भिक्खू ॥ २० ॥ तं देहवासं असुई असासयं सया चए निच्चहियट्ठियप्पा |
छिंदि जाईमरणस्स बंधणं
चू० १
उवेइ भिक्खू कुणागमं गई ॥ २१ ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ सभिक्खू अज्झणं दसमं समत्तं ॥
|| रक्क्का चूलिया पढमा ।।
इह खलु भो पव्वइयां उत्पन्न दुक्खेणं संजमे रइसमावनचितेां ओहारगुप्पेहिणा अगोहाइपरां चेव हयरस्सिगयंकुसपोय पडागाभूयाई इमाई हारस ठाणाई सम्म संपडिलेहियव्वाइं भवन्ति । तं जहा
हं भेr दुस्समाए दुप्पजीवी ॥ १ ॥
लहुलगा इत्तरिया गिहीरां कामभेागा ॥ २ ॥ भुजो य साइबहुला मगुस्सा ॥ ३ ॥ १. जेणं च
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