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________________ श्रीनन्दीसूत्र ] [२३१ पत्तेयबुद्धावि तत्तिया चेव, से त्तं कालियं, से तं आवस्सयवइरितं, से तं अणंगपविटुं ।। सू० ॥ ४४ ॥ से किं तं अंगपविटुं ? - अंगपविट्ठ दुवालसविहं परणतं, तंजहा-पायारो १ सूयगडो २ ठाणं ३ समवायो ४ विवाहपन्नत्ती ५ नायाधम्मकहाओ ६ उवासगदसायो ७ अंतगडदसाओ ८ अणुत्तरोववाइयदसाओ ६ पण्हावागरणाई १० विवागसुयं ११ दिट्टि-- वाओ १२ ।। सू० ॥४५॥ से किं तं आयारे ? आयारे णं समणाण निग्गंथाणं आयारगोयरविणयवेणइयसिक्खाभासाअभासाचरणकरणजायामायावित्तीओ आघविज्जति । से समासओ पंचविहे पण्णते, तंजहा-नाणायारे, दंसणायारे, चरित्तायारे, तवायारे, वीरियायारे । आयारे ण परित्ता वायणा, संखेजा अणुप्रोगदारा, संखिजा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिजाओ निज्जुत्तीओ, (संखिजाओ संगहगीरो) संखिजाओ पडिवत्तीओ, से गं अंगट्टयाए पढमे अंगे, दो सुयक्खंधा, पणुवीसं अज्झयणा, पंचासीइ उद्देसणकाला, पंचासीइ समुद्देसणकाला, अट्ठारस पय सहस्प्लाइं पयग्गेणं, संखिजा अक्खरा, अणता गमा, अणता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिवद्धनिकाइया जिणपएणत्ता भावा प्राधिज्जति, पन्नविज्जंति, परूविजंति, दंसिजंति, निदंसिजंति, उवदंसिजंति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विराणाया, एवं चरणकरणपरूवरमा आघविजइ, से तं पायारे १ ॥ सू० ।। ४६ ।। से किं तं सूयगडे ? सूयगडे ण लोए सूइजइ, अलोप सूइ
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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