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________________ ॥ उत्तरयण-सुतं ॥ विययं पढमं भयं संजोगा विप्यमुक्कस्त, अणगारस्त भिक्खुणो । विण्यं पाउ करिस्सा मि, आपुवि सुरोह मे ॥ १ ॥ आणानिद्देसकरे, गुरूणमुववायकारए । इंडियागार संपन्न, से विणीपत्ति वुच्चइ ||२॥ श्राणाऽनिद्देस करे, गुरूणमणुववायकारए । पडिणीए असंबुद्धे. विणीए ति च ॥ ३ ॥ जहा सुणी पूइकराणी, निक्कसिजर सव्वसो । एवं दुस्सीलपडिणीए, मुहरी निक्कसिजइ ॥४॥ कणकुण्डगं चइत्ताणं, विट्ठ भुजइ सूयरे । एवं सील चइत्ताणं, दुस्सीले रमइ मिए ॥५॥ सुणिया भावं सास्स, सूयरस्स नरस्स य । विए ठवेज अप्पाणमिच्छन्तो हियमप्पणी || ६ || तम्हा विषय मेसिज्जा, सीलं पडिल भेजश्र । 'बुद्धपुत्ते नियागट्ठी, न निक्कसिजर करहुई ||७ १. बुडवुत्त० ।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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