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________________ ४२ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अज्झयण ६-१ सो चेव ऊ तस्स अभूइभावो फलं व कीयस्स वहाय होइ ॥ १ ॥ जे यावि मंदित्ति गुरुं विइत्ता डहरे इमे अप्पसुए त्ति नच्चा । हीलंति मिच्छ पडिवज्जमाणा करंति प्रासायण ते गुरूरणं ॥२॥ पगईए मन्दा वि भवंति एगे डहरा वि य जे सुयबुद्धोववेया । आयारमंता गुणसुट्ठियप्पा जे हीलिया सि हिरिव भास कुज्जा ॥३॥ जे यावि नाग डहरं ति नच्चा प्रासायए से अहियाय होइ। एवायरियं पि हु हीलयंतो नियच्छइ जाइपहं खु मन्दे । ४ ।। पासीविसो यावि परं सुरुट्ठो किं जीवनासाउ परं नु कुज्जा। आयरियपाया पुण अप्पसन्ना अबोहिआसायण नत्थि मोक्खो ॥५॥ जो पावगं जलियमवकमज्जा प्रासीविसं वा वि हु कोवएज्जा। जो वा विसं खायइ जीवियट्ठी एसोवमाऽऽसायणया गुरूणं ॥६॥ सिया हु से पावय नो डहेज्जा आसीविसो वा कुवित्रो न भक्खे । सिया विसं हालहलं न मारे न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए ॥७॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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