SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] सन्निहिं च न कुवेजा, लेवमायाए संजः। पक्खीपत्तं समादाय, निरवेक्खो परिवार ॥१५॥ एसणासमित्रो लज्जू, गामे अणियो सरे । अप्पमत्तो पमत्त हिं, पिण्डवायं गवेसए । १६।। एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी अणुत्तरदसी अगुत्तरनाणदसणधरे अरहा नायपुत्त भगवं वेसालिए वियालिए । ति बेमि ॥ ॥ इइ खुड्डागनियंठिज्ज छठें अज्झयणं समत्तं ॥५॥ ॥अह एलइज्ज सत्तमं अज्झयणं । जहाएसं समुद्दिस्स, कोह पोसेज एलयं । ओयणं जवसं देज, पोसेन्जावि सयंगणे ॥१॥ तओ से पुढे परिवूढे, जायमेए महोदरे। पीणिए विउले देहे, अाएसं परिकंखए ॥२।। जाव न एइ आएसे, ताव जीवह से दुयो । अह पत्तम्मि आएसे, सीसं छेतूण भुजा ॥३॥ जहा से खलु उरब्मे, आएसाए समीहिर । एवं बाले अहम्मिटे, ईहई नरयाउय ।।४॥ हिंसे बाले मुसावाई, अद्धाणंसि विलोवर । अन्नदत्तहरे तेणे, माई के नु हरे सढे ॥५॥ इत्थीविसयगिद्धे य, महारंभपरिग्गहे। भुंजमाणे सुरं मंसं, परिवूढे परंदमे ॥६॥ अयकक्करभोई य, तुंडिल्ल चियलोहिए। पाउयं नरए कंखे, जहाएसं व एलए १७।। पासणं सयणं जाणं, वित्तं कामे य भुंजिया । दुस्साहडं धणं हिश्चा, बहु संचिणिया रवं ॥८॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy