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________________ १५६] [जीवन-श्रेयस्कर- पाठमाला. - रागाउरे से जह वा पयंगे; आलोयलोले समुवेह मच्चुं ॥२४॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किञ्चि रूवं अवरज्झइ से ॥२५।। एगन्तरत्ते रुहरंसि रूवे, अतालिसे से कुणई पत्रोसं। दुक्खस्स सम्पीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥२६॥ रूवाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसह ऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिट्टे ॥२७॥ रूवाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निोगे। वए विओगे य कहं सुहं से, सम्भोगकाले य अतित्तलामे ? ॥२८॥ रूवे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेि । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभावित प्राययई अदत्तं ॥२९॥ तरहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, . रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तस्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥३०॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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