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________________ श्री उत्तराध्ययन सूत्र ] [ १२५ " कम्मुणा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तियो । वइस्लो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुखा ॥ ३३ ॥ एए पाउकरे बुद्धे, जेहिं होइ सिगाय ओ | सव्वकम्मविणिम्मुक्कं तं वयं बूम माहणं ||३४|| एवं गुणसमाउत्ता, जे भवन्ति दिउत्तमा । ते समत्था उ उद्धत्तुं, परमप्पाणमेव य || ३५॥ एवं तु संसए छिन्ने, विजय घोसे य माहणे । समुदाय तओ तं तु, जयघोषं महामुणिं ॥३६॥ तुट्टे य विजयघोसे, इणमुदाहु कथंजली | माहणतं जहाभूयं, सुठु मे उवदंसियं ||३७|| तुब्भे जइया जन्नाणं तुब्भे वेगविऊ विऊ । जो संगविऊ तुब्भे, तुब्भे धम्माण पारगा ॥ ३८ ॥ तुब्भे समत्था उद्धत्तुं, परमप्पाणमेव य । तमगुग्गहं करेहऽम्हं भिक्खेणं भिक्खुउत्तमा ॥३६॥ न कज्जं मज्झ भिक्खेणं, खिष्पं निक्खमसु दिया ! मा भमिहिसि भयावट्टे, घोरे संसारसागरे ॥४०॥ उवलेवो होइ भोगेसु, अभोगी नोवलिप्पइ | भोगी भइ संसारे, अभोगी विप्पमुश्च ॥४१॥ उलो सुक्को य दो छढा, गोलया मट्टियामया । दो वि श्रावडिया कुड्डे, जो उल्लो सोऽत्थ लग्गइ ||४२ || एवं लग्गन्ति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न लग्गन्ति, जहा से सुक्कगोलए ॥४३॥ एवं से विजय से, जयघोसस्स अन्तिए । अणगारस्स निक्खन्तो, धम्मं सच्चा अणुत्तरं ||४४|| खवित्ता पुव्वकम्माई, संजमेण तवेण य । जय घोसविजय घोसा, सिद्धिं पत्ता अणुत्तरं ||४५|| ति बेमि
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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