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________________ श्रीउतराध्ययन सूत्र ] वलया 'पव्वगा कुहुणा, जलरुहा श्रसही तहा । हरिबकाया बोधव्वा पत्तेगा इह श्राहिया ||१६|| साहार सरीरोऽगहा, ते पकित्तिया । आलुर मूलर चेव, सिंगबेरे तहेव य ॥७॥ हिरिली सिरिली सस्सिरिली, जावई केयकन्दली । पलण्डुलसरणकन्दे य, कन्दली य कहुव्वर ॥ ६८|| लोहिणी थी हूय, कुहगा य तहेव य । कराहे य वज्जकन्दे य, कन्दे सूरणए तहा ||६|| अस्करणीय बोधव्वा, सीहकरणी तहेव य । मुसुरढी य ह लिद्दा य, रोगह। एवमाश्रो ॥ १०० ॥ एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया । सुहुमा सव्लोगम्पि, लोगदेसे य बायरा ||११|| संतई पप गाईया, अजबसियावि य । ठि पडुश्च साईया, सपजावसियावि य ॥१०२॥ दस चेव सहस्लाई, कसाणुकोसिया भवे । वफई आउं तु श्रन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १०३ ॥ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुतं जहन्नयं । कायठिई पणगाणं, तं कार्य तु श्रमुचओ ॥ १०४॥ | असंखकालमुकोर्स, अन्तोमुहुतं जहन्नयं । विजढम्म सए काए, पणगजीवाण अन्तरं ॥ १०५ ॥ | एसिं वरण चेव, गन्धओ रसफासश्रो । ठाणास वावि, विहाणाई सहस्सो ॥ १०६ ॥ [ १८७ इथे थावरा तिविहा, समासेण वियाहिया । इत्तो उ तसे तिविहे, वुच्छामि श्रणुपुव्वसो ॥१०७॥ १. पव्वज्जा ।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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