________________
१०२]
[ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला
नियराठधम्म लहियामा वि जहा,
सीयन्ति एगे बहुकायर। नरा ।।३।। जो पव्वइत्ताण महव्वयाई,
___ सम्मं च नो फासयइ पमाया । अनिग्गहप्ता य रसेसु गिद्धे,
न मूलो छिन्नइ बन्ध से ॥३६।। आउत्तया जस्स न अस्थि काइ,
इरियाए भासाए तहेसणाए । आयाण निक्खेवदुगंछणाए,
न 'धीरजायं अणुजाइ मग्गं ॥४०॥ चिरं पि से मुण्डरुई भवित्ता,
अथिरव्वए तवनियमेहि भट्ठे । चिरं पि अप्पणा किलेसइत्ता,
न पारए होइ हु संपराए ॥४१॥ पोल्ले व मुट्ठी जह से असारे,
अयन्तिए कूडकहावणे वा । राढामणी वेरुलियप्पगासे,
अमहग्घए होइ हु जाणएसु ॥४२॥ कुसीललिंगं इह धारइत्ता,
इसिज्झयं जीविय चूहइत्ता। असंजए संजयलप्पमाणो,
विणिघायमागच्छइ से चिरंपि ॥४३।। विसं तु पीयं जह कालकृडं,
हणाइ सत्थं जह कुग्गहीयं ।
१. वीर०