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॥ अह सभिक्खू पंचदहं अभयणं ॥
मोणं चरिस्सामि समिच्च धम्मं,
सहिए उज्जुकडे निय। छिने । संथवं जहिज कामकामे,
[ जीवन श्रेयस्कर - पाठमाला
अन्नायएसी परिव्वए स भिक्खू ॥१॥ ओवरयं चरेज लाढे,
विगए वेयवियायर क्खिए ।
पन्ने अभिभूय सव्वदंसी जे,
अक्कोसवहं विइत्तु धीरे,
श्रव्वग्गमणे
कहिचि नमुच्छिएस भिक्खू ||२||
मुणी चरे लाढे निश्चमायगुत्ते । संपहिले,
जे सिगं श्रहियासप स भिक्खू ॥३॥
१. सक्किय ।
पन्तं सयणासां भइत्ता,
सीरहं विवि च दंसमसगं । अवग्गमणे श्रसंपहिले,
जे कसिणं डियासए स भिक्खू ||४||
नो 'सक्करमिच्छई न पूयं,
नो वि य वन्दरागं कुत्रो पसंसं ? से संजय सुव्वर तवस्सी,
सहिए आयगवेसएस भिक्खू ॥५॥
जेण पुरण जहाह जीवियं,
मोहं वा कसिणं नियच्छइ ।