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श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ]
बायरा जे उपजत्ता, दुविहा ते वियाहिया । सराहा खरा य बोधव्वा, सराहा सत्तविहा तहिं ॥ ७२ ॥ किरहा नीला य रुहिरा य, हलिद्दा सुक्किला तहा । परडुपरागमट्टिया, खरा छत्तीसईविहा ॥७३॥
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पुढची य सक्करा वालुया य,
उवले सिला य लोणूसे ।
अय-तम्ब तय-सीलग,
हरियाले
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रुप-पुराणे यवहरे य ||७४ || हिंगुलप
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मणासिला सासगंजण - पवाले ।
अब्भपडलब्भवालुय,
पायरकाए मणिविहाणे ॥७५॥ गोमेजए य रुयगे, अंके फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय-मसारगल्ले, भुयमोयग - इन्दनीले य ॥७६॥ चन्दण गेरुय हंसगब्भे, पुल ए सोगन्धि य बोधव्वे । चन्दण्पहवेरु लिए, जलकन्ते सुरंकन्ते य ॥७७॥ एए खरपुढवी, भैया छत्तीसमाहिया । एग विमनात्ता, सुहमा तत्थ वियाहिया ॥ ७८ ॥ हुमाय सव्वलोम्मि, लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु, वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥७६॥ संतई पप्पाईया, अपजवसियावि य । ठिडं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ ८०॥ बावीस सहरसाई, वासाणुक्कोसिया भवे आउठिई पुढवीणं, अन्तोमुहुरां जहन्निया ॥ ८१ ॥ असंखकाल मु+कोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । काय लिई पुढवी, तं कार्यं तु प्रमुचओ ॥८२॥