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श्रीनन्दी सूत्र ]
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से किं तं मल्तगदितेां ?
ते से जहाना मए केइ पुरिसे आवागसीसाश्रो मल्लगं गहाय तत्थेगं उदगबिंदुं पक्खिविजा से नट्टे, अराणेऽवि पक्खिते सेsवि नट्टे, एवं पक्खिमाणेसु पक्खिप्यमाणेसु होही से उदगबिंदू जे शं तं मल्लगं रावेहिद्दत्ति; होही से उदगबिन्दू जे तंसि मलगंसि ठाहिति; होही से उदगबिन्दू जे गं तं मल्लगं भरिहिति होही से उदगबिंदू जे गं तं मल्लगं पवाहेहिति; एवामेव पक्खिमाणेहिं पक्खिप्पमाणेहिं णंतेहिं पुग्गलेहिं जाहे तं वंजणं पूरियं होइ; ताहे हुंति करेइ, नो चेव णं जाइ के विएस सद्दाइ ? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ
मुगे एल सद्दाइ; तओ अवायं पविसइ, तो से उवगयं हवइ तो गं धारणं पविसइ, तो गं धारेइ संखिज्जं वा कालं असंखिज्जं वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सद्दं सुणिजा, ते सहोत्ति उग्गहिए, नो चेव गं जागइ के वेस सद्दाइ ? तो ईहं पविसइ, तो जाणइ अमुगे एस सहे, तो गं अवायं प्रविसइ, तओ गं धारेइ संखेजं वा कालं श्रसंखेजं वा कालं ।
से जहानार केइ पुरिसे श्रव्वत्तं रूवं पासिजा ते रूवत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रूवत्तिः तत्र ईहं पविसइ, तओ जाइ अमुगे एस रूवे, तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ, तत्र धारणं पविसइ, तम्रो गं धारेइ संखेजं वा कालं, असंखेज्जं वा काले ।
से जहानामए केइ पुरिसे श्रवत्तं गंधं श्रग्घाइजा तेणं गंधति उग्गहिए, नो चेव गं जागर के वेस गंधेति; तभ ईहं