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________________ १६६ ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला रागाउरे कामगुणेसु गिछे, करेणुमग्गावहिए गजे वा ॥ ८९ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिब्बे, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सरण जन्तू, न किंचि भावं श्रवरभई से||१०|| एगन्तरते रुइरंसि भावे, तालिसे से कुणई पोसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्यई तेरा मुखी विरागेो ॥ ९१ ॥ भावाणुगासा गए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्ते हि ते परिता वेइ बाले. पीलेहि अत्तट्टगुरु किलिट्टे ॥ ९२ ॥ भावाणुवारण परिग्ग हेग, उपायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओोगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ? ॥ ६३ ॥ भावे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेद तुट्ठि । तुट्ठदोसे दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ||१४|| तरहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, भावे अतित्तस्स परिग्गहे य । माय मुसं वड्डर लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चाई से || १५||
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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