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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र]
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अवसोहिथ कण्टगापहं,
अोइराणा सि पहं महालय गच्छसि मग्गं विसोहिया,
समयं गायम ! मा पमायए ॥३२॥ अबले जह भारवाहए,
मा मग्णे विसमेऽवगाहिया । पच्छा पच्छाणुतावए,
समयं गायम ! मा पमायए ॥३३।। तिण्णा हु सि अण्णवं महं,
किं पुण चिटुसि तीरमागओ। अभितुर पारं गमित्तए,
समयं गोयम ! मा पमायए॥३४॥ अकलेवरसेणिं उस्सिया,
सिद्धिं गोयम ! लोयं गच्छसि! खेमं च सिवं अणुत्तरं,
समय गोयम ! मा पमायए । ३५।। बुद्धे परिनिव्वुडे चरे,
गामगए नगरे व संजए । संतिमग्गं च वूहए,
. समय गायम ! मा पमायए ॥३६॥ बुद्धस्स निसम्म भासियं,
सुकहियमपोवसोहियं । रागं दोसं च छिन्दिया,
सिद्धिगई गए गोयमे ॥३७॥ त्ति बेमि । ॥ इअ दुमपत्तयं समत्तं ॥१०॥