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________________ ६२ ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला पहयाओ दुन्दुहीओ सुरेहिं, आगासे अहो दाणं च घुटुं ॥ ३६ ॥ सक्खं खुदीसह तवो विसेसो, न दीसइ जाइविसेस कोई । सोवागपुत्तं हरिएससाहु, जस्सेरिसा इड्ढि महाणुभागा ॥३७॥ किं माहणा जोइसमारभन्ता, उदरण सोहिं बहिया विमग्गह । जं मग्गहा बाहिरियं विसेोहिं, न तं सुदिट्टु कुसला वयन्ति ||३८|| कुसं च जूर्व तणकटुमरिंग, सायं च पायं उदगं फुलन्ता । पाणाइ भूयाइ विहेडंयन्ता, भुजो वि मन्दा पगरेह पावं ॥ ३९ ॥ कहं चरे भिक्खु ! वयं जयामो, पावाइ कमाइ पुणोल्लयामो । क्वाहि से संजय ! जक्खपूइया, कहं सुजटुं कुसला वयन्ति ||४०|| छजीवक ए असमारभन्ता, मोसं दत्तं च सेवमाणा । परिग्गदं इत्थिओ माणमायं, एयं परिन्नाय चरंति दंता ||४१|| सुसंवुडा पंचहिं संवरेहि, इह जीवियं प्रणवकंखमाणा । वोसटुकाया सुइचत्तदेहा, महाजयं जयइ जन्नसि ॥४२॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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