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________________ दसवेलियसुत्तं तित्तगं व कडुयं व कसायं अंबिलं व महुरं लवणं वा । एयलद्धमन्नट्ठपउत्तं महुघयं व भुंजेज संजए ॥ ६७ ॥ असं विरसं वावि सूइयं वा सूइयं । उल्लं वा जइ वा सुक्कं मंथुकुम्मासभोयणं ॥ ९८ ॥ उपपन्नं नाइहीलेजा श्रप्पं वा बहु फासूयं । मुहाल मुहाजीवी भुंजिज्ज । दोसवज्जियं ॥ ६६ ॥ दुल्लहा उ मुहादाई मुहाजीवी विदुलहा । मुहादाई मुहाजीवी दो वि गच्छन्ति सुग्गई ॥ १०० ॥ ॥ त्ति बेमि ॥ || पंचमज्झयणस्स पिंडेसरा ए पढमुद्देस समत्तो ॥ ॥ पंचमममय-त्री उद्देस ॥ पडिग्गहं संलिहित्तारां लेवमायाए संजए । दुग्गंधं वा सुगंधं वा सव्वं भुंजे न छड्डए ॥ २ ॥ सेजा निसीहियाए समावन्नो य गोयरे । अट्ठा भोच्चारणं जइ तेण न संथरे ॥ २ ॥ तओ कारणमुपने भत्तपाणं गवेसए । विहिणा उत्ते इमेणं उत्तरेण य ॥ ३ ॥ काले निक्खमे भिक्खू कालेख य पडिक्कमे । अकालं च विवज्जित्ता काले कालं समायरे ॥ ४ ॥ काले चरसि भिक्खू कालं न पंडिलेहसि । अप्पाच किलामेसि सन्निवेसं च गरिहसि ॥ ५ ॥ स काले चरे भिक्खू कुज्जा पुरिसकारियं । अलाभ त्ति न सोएज्जा तवो त्ति अहियालए || ६ || अभय ५-२ १. आायावयट्ठा । २१
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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