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जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला
तं उक्ख वित्तु न निक्खिवे आसएण न छडए । हत्थेण तं गर्हणं एतमवक्कमे ॥ ८५ ॥ एगंतमवक्कमित्ता श्रचित्तं पडिलेहिया । जयं परिवेज्जा परिट्टप पडिक्कमे ॥ ८६ ॥ सिया य भिक्खु इच्छेजा सेजमागम्म भोत्तुअं । सपिंडपायमागम्म उडुयं पडिलेहिया ॥ ८७ ॥ विणपण पविसित्ता सगा से गुरुगो मुणी । इरियावहियमायाय आगयो य पडिक्कमे ॥ ८८ ॥ भोएत्ताण नीसेसं श्रइयारं जहक्कमं । गमणागमणे चैव भत्तपाणे य संजए ॥ ८६ ॥ उज्जुपपन्नो अणुविग्गो अव्यक्खिसेरा चेयसा । आलोए गुरुसगासे जं जहा गहियं भवे ॥ ६० ॥ न सम्ममालोइयं होजा पुगि पच्छा व जं कडे । पुणे पडिक्कमे तस्स वोसिट्ठो चिंतर इमं ॥ ६१ ॥ अहो जिरोहिऽसावजा वित्ती साहूण देसिया | मोक्स (हे उस साहुदेहस्स धारणा ॥ ६२ ॥ नमोक्कारेण पारेत्ता करेत्ता जिणसंथवं । सायं पट्टवित्ताणं वीसमेज खां मुणी ॥ ६३ ॥ वसमतो इमं चिंते हियमङ्कं लाभमट्टिओ' ।
जर मे अग्गहं कुजा साहू होज्जामि तारिओ ॥ ६४ ॥ साहवो तो चियत्तेगं निमंतेज जहक्कमं । जइ तत्थ केइ इच्छेजा तेहिं सद्धिं तु भुंजए ॥ ६५ ॥
अभयण ५-१
अह कोइ न इच्छेज्जा तओ भुंजेज एकत्र । आलोए भायणे साहू जयं अपरिसाडियं ॥ ६६ ॥
१ - मस्ति ।