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[ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला
तत्तो वि य उचट्टित्ता,
संसारं बहु अणुपरियडति ।
बहुकम्मलैव लित्तणं,
बोही होइ सुदुलहा तेसिं ||१५||
सिपि जो इमं लोयं,
पडिपुरां दलेज्ज इक्कस्स ।
तेणावि से न संतुस्से,
ss दुप्पूरए इमे आया || १६ ||
जहा लाहा तहा लोहे,
लाहा लोहा पवडइ |
दोमासकयं कज्जे,
कोडी विन निट्टियं ॥ १७॥
नो रक्खसी गिज्झेजा,
isaच्छा ऽगचित्तासु ।
जाश्रो पुरिसं पलोभित्ता,
खेल्लुंति जहा व दासेहिं || १८ ||
नारीसु नोवगिज्भेज्जा,
इत्थी विष्पजहेज्ज अणगारे |
धम्मं च पेसलं नच्चा,
तत्थ ठवेज्ज भिक्कू वा ॥ १६ ॥
इ एस धम् अक्खाए,
कविलेणंच विसुद्ध पन्नेां ।
तरिहिंति जे उ काहिंति,
तेहिं श्राराहिया दुवे लोगा ॥ २०॥ ति बेमि ||
॥ काविलीयं श्रयं यणं समत्तं ।।