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________________ ४२ ] [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला तत्तो वि य उचट्टित्ता, संसारं बहु अणुपरियडति । बहुकम्मलैव लित्तणं, बोही होइ सुदुलहा तेसिं ||१५|| सिपि जो इमं लोयं, पडिपुरां दलेज्ज इक्कस्स । तेणावि से न संतुस्से, ss दुप्पूरए इमे आया || १६ || जहा लाहा तहा लोहे, लाहा लोहा पवडइ | दोमासकयं कज्जे, कोडी विन निट्टियं ॥ १७॥ नो रक्खसी गिज्झेजा, isaच्छा ऽगचित्तासु । जाश्रो पुरिसं पलोभित्ता, खेल्लुंति जहा व दासेहिं || १८ || नारीसु नोवगिज्भेज्जा, इत्थी विष्पजहेज्ज अणगारे | धम्मं च पेसलं नच्चा, तत्थ ठवेज्ज भिक्कू वा ॥ १६ ॥ इ एस धम् अक्खाए, कविलेणंच विसुद्ध पन्नेां । तरिहिंति जे उ काहिंति, तेहिं श्राराहिया दुवे लोगा ॥ २०॥ ति बेमि || ॥ काविलीयं श्रयं यणं समत्तं ।।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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