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________________ . कल्याणमन्दिरस्तोत्रम् ] आपादकण्ठ मुरुशृङ्खलवेष्टिताङ्गा, गाढं बृहन्निगडकोटिनिघृष्टजङ्घाः । त्वन्नाममंत्रमनिशं स्मरन्तः, मनुजाः सद्यः स्वयं विगतबंधभया भवन्ति ॥ ४६ ॥ मत्तद्विपेन्द्र मृगराजदवानलाहिसङ्ग्रामवारिधिमहोदरबन्धनोत्थम् । तस्याशुनाशमुपयाति भयं भियेव, यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ॥ ४७ ॥ स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र ! गुणैर्निबद्धां, भक्त्या मया रुचिरवर्णविचित्रपुष्पाम् । धरो जनो धत्ते य इह कण्ठगतामजस्रं, तं मानतुङ्गमवशा समुपैति लक्ष्मीः ॥ ४८ ॥ ॥ इति मान्तुगाचार्य विरचिते स्तोत्रम् ॥ || श्री सिद्धसेनदिवाकरप्रणीतम् ॥ || श्री कल्याणमन्दरस्तोत्रम् || [ २८३ कल्याणमन्दिर मुदारमबद्यभेदि, भीताभयप्रद मनिन्दित मंत्रिपद्मम् । संसारसागर निमज्जदशेषजंतु - पोतायमानमभिनम्य जिनेश्वरस्य ॥ १ ॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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