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________________ श्री उत्तराध्ययन सूत्र 1 सीहो व सहेण न संतसेज्ज', वयजोग सुच्चा न असम्भमाहु ||१४|| उवेहमाणो उ परिव्वइज्जा, पियमप्पियं सव्व तितिक्खइज्जा । न सव्व सव्वत्थ ऽभिरोयइज्जा, न यावि पूयं गरहं च संजय ॥ १५ ॥ माणवेहिं, अगच्छन्दाइह जे भाव भयभेरवा तत्थ उइन्ति भीमा, दिव्वा मरगुस्सा अदुवा तिरिडंडा ||१६|| परीसहा दुव्विसहा अरोगे, संपगरेइ भिक्खू । [ १०७ सीयन्ति जत्था बहुकायरा नरा । से तत्थ पत्ते न वहिज्ज भिक्खू, संगमसीसे इव नागराया ॥ १७॥ सीओसिणा दंसमला य फासा, आर्यका विविहा फुसन्ति देहं । कुक्कु तत्थऽहिया सहेज्जा, रयाइ खेविज्ज पुरे कयाई ॥ १८ ॥ पहाय रागं च तहेव दोसं, मोहं च भिक्खू सययं वियक्खणो । मेरुव वारण अकम्पमाणो, परीसहे आयगुत्ते सहेजा ॥ १६ ॥ प्रणुन्नए नावणए महेसी, न यावि पूयं गरहं च संजए । स उज्जुभावं पडिवज, संजय, निव्वाणमग्गं विरए उवेह ||२०||
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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