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[ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला
लामंत जीविय पच्छा परिन्नाय
छंदनिगोहेण उवेइ
वूह इत्ता,
मलावधंसी ॥७॥
मोक्खं,
आसे जहा सिक्खियवम्मधारी ।
पुव्वाइं वासाई चरण्पमत्ते,
तम्हा मुगी खिप्पमुवेइ मुखं ॥ ८ ॥ स पुत्रमेवं न लभेज पच्छा,
एसोवमा सासयवाइयाणं । विसीयई सिढिले श्राउयम्मि,
कालोवणीए सरीरस्स भए ॥ ॥ विप्पं न स विवेगमेडं,
तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे । समिच्च लोयं समया महेसी,
errerrat चरऽप्पमत्ते ||१०|| मुहुं हुं मोहगुणे जयंतं, अगरूवा समां फासा फुसन्ति असमंजसं च,
चरंत |
न तेस भिक्लू मसा पउस्से ||११|| मन्दाय फासा बहुलोहणिजा,
तहप्पग| रेसु मणं न कुजा । रक्खज्ज कोहं विणएज्ज माणं,
मायं न सेवेज पहेज्ज लोहं ५१२ || जे संजया तुच्छ परप्पवाई,
ते पिज्जदोसा गया परज्झा | एए हम्मे ति दुगुंछमाणो,
*खे गुणे जाव सरीरभेउ || १३|| ति प्रेमि ।