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[जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला
रागाउरे ओसहगन्धगिद्ध,
सप्पे विलाओ विव निक्खमंते ।।५०।। जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं,
___ तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सपण जन्तू,
न किंचि गन्धं अवरज्झई से ॥५१॥ एगन्तरत्ते रुइरंसि गन्धे,
अतालिसे से कुणई पोसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले,
__ न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥५२॥ गन्धाणुगासाणुगए य जीवे,
चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले,
पीलेइ अत्तगुरू किलिट्टे ॥५३।। गन्धाणुवाएण परिग्गहेण,
उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहं सुहं से,
संभोगकाले य अतित्तलाभे ? ॥५४॥ गन्धे अतित्ते य परिग्गहम्मि,
सत्तोवसत्तो न उवे तुहिँ । अतुढिदोसेण दुही परस्स.
लोभाविले आययई अदत्तं ॥५५॥ तराहाभिभूयस्स अदत्तहारिणा.
गन्धे अतित्सस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा,
मस्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥५६।।