SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६०] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला रागाउरे ओसहगन्धगिद्ध, सप्पे विलाओ विव निक्खमंते ।।५०।। जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, ___ तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सपण जन्तू, न किंचि गन्धं अवरज्झई से ॥५१॥ एगन्तरत्ते रुइरंसि गन्धे, अतालिसे से कुणई पोसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, __ न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥५२॥ गन्धाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिट्टे ॥५३।। गन्धाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ? ॥५४॥ गन्धे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवे तुहिँ । अतुढिदोसेण दुही परस्स. लोभाविले आययई अदत्तं ॥५५॥ तराहाभिभूयस्स अदत्तहारिणा. गन्धे अतित्सस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, मस्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥५६।।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy