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________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] मोसस्स पच्छाय पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं श्रदत्ताणि समाययन्तो, गन्धे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ||५७ || गन्धाणुरत्तस्स नरस्स एवं, [ १६१ कुत्तो सुहं होज कयाइ किंचि ? तत्थभोगे व किलेस दुक्खं, निव्वत्तई जस्ल करण दुक्खं ॥ ५८ ॥ एमेव गन्धम्म गो पत्रसं, उवे पट्टचित्तो य चिणाइ कम्मं, दुक्खोहपरंपराश्रो । जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ५६ ॥ गन्धे विरतो मणुत्रो विसोगो, एए‍ दुक्खोहपरंपरेण | न लिप्पई भवमज्झे वि सन्तो, जलेर वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ६० ॥ जिब्भाए रसं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउ श्रम सुन्नमाहु. समोय जो तेसु स वीयरागो ॥ ६१ ॥ रसस्स जिन्भं गहणं वयंति, जिन्भाए रसं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समरणुन्नमाहु. दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥६२॥ रसे जो गिद्धिमुत्रेइ तिव्वं, अकालियं पावर से विणासं ।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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