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[जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला
रागाउरे वडिसविभिन्नकाए,
मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ॥६३॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं,
तसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू
न किंचि रसं अवरज्झई से ॥६४॥ एगन्तरत्ते रुहरंसि रसे,
अतालिसे से कुणई पत्रोसं। दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले,
न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥६५।। रसाणुगासाणुगए य जीवे,
चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ वाले,
पीलेइ अत्तट्टगुरू किलिटे ॥६६।। रसाणुवाएण परिग्गहेण,
उप्पायणे रक्खणसन्निोगे। वए विप्रोगे य कहं सुहं से,
संभोगकाले य अतित्तलामे ? ॥६७।। रसे अतित्ते य परिग्गहम्मि,
सत्तोवसत्तो न उवेइ तुर्द्धि। . अतुट्टिदोसेण दुही परस्स,
लोभाविले आययई अदत्तं ॥६८।। तरहाभिभूयस्स अदत्तहारिणा,
रसे अदत्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढा लोभदोसा,
तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥६६॥ .