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जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला
'कोह लोहा भय हाल माणवो न हासमाणो विगिरं वएज्जा ॥ ५४ ॥
सवक्कसुद्धिं समुपेहिया मुखी
गिरं च दुटुं परिवज्जए सया । मिथं अट्ठे अणुवीइ भासए
सयाण मज्जे लहइ पसंसणं ॥५५॥ भासाए दोसे य गुणे य जाणिया
तीसे य दुट्ठे परिवज्जए सया । छसु संजए सामणि सया जए
वपज्ज बुद्धे हियमाणुलोमियं ॥ ५६ ॥ परिक्खभासी सुसमाहिईदिए
चउकसायावगए अणिस्सिए । स निद्धुणे धुन्नमले पुरेकर्ड
अज्झयण द
श्राराहए लोगमिां तहा परं ॥ ५७ ॥ ति बेमि ॥ | सत्तमं वक्कसुद्धी अभयणं समत्तं ॥ ॥ श्रायारणिहिनामं ममायणं ॥
आयारपणिहिं लद्धुं जहा कायव्व भिक्खुणा । तं भे उदाहरिस्सामि श्रणुपुवि सुरोह मे ॥ १ ॥ पुढवि - दग - श्रगणि- मारुय - तणरुक्ख-सबीयगा । तसा य पाणा जीव त्ति इइ वुत्तं महेसिणा ||२|| तेसिं अच्छणजोएण निच्चं होयव्वयं सिया । मणसा कायवक्केण एवं भवइ संजए ||३|| पुढविं भित्ति सिलं लेलुं नेव भिन्देन संलिहे । तिविहे करणजोएण संजए सुसमाहिए ॥ ४ ॥ १. कोहलोहभयसा व माणवी । २. धुत्त० । ३ वाऊ |