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________________ भक्तामरस्तोत्रम् | - [२७५ अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममितं च, दुष्पट्टियसुपट्टिओ॥ २८ ।। जो सहस्सं सहस्साणां, संगामे दुजए जिए । एग जिणेज अप्पारणं, एस से परमो जओ ॥ २६ ॥ लाभालाभे सुहे-दुक्खे, जीविए मरणे तहा। समो मिन्दापसंसासु, तहा माणावमाणओ ॥ ३० ॥ ॥ भक्तामरस्तोत्रम् ॥ भक्तामरप्रणतमालिमणिपभाणामुद्योतक दलितपापतमोवितानम् । सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादावालम्बनं भवजले पततां जनानाम् ॥१॥ यः संस्तुतः सकलवाङ्मयतत्त्वबोधा दुद्भूतबुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः । .. स्तोत्रैर्जगत्रितयचित्तहरैरुदारैः, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्॥२॥ 'बुध्ध्या विनाऽपि विबुधार्चितपादपीठ !, स्तोतुं समुद्यतमतिर्विगतत्रपोऽहम् । बाल विहाय जलसंस्थितमिन्दुबिम्बसन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥३॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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