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________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१७१ सबजीवाण कम्मं तु, संगहे छद्दिसागयं । सब्वेसु वि पएसेसु, सव्वं सब्वेण बद्धगं ॥१८॥ उदहीसरिसनामा, तीसई कोडिकोडिअो । उक्कोसिया ठिई होइ, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया।।१९।। आवरणिजाण दुरहंपि, वेयणिजे तहेव य । अन्तराए य कम्मम्मि, ठिई एसा वियाहिया ॥२०॥ उदहीसरिसनामार, सत्तर कोडिकोडियो। मोहणिजस्स उक्कोसा, अंतोमुहत्तं जहनिया ।।२१।। तेत्तीस सागरोवमा, उकोसेण वियाहिया। ठिई उ आउकम्पस्स, अन्तोमुहत्तं जहनिया ॥२२॥ उदहीसरिसनामारणं, वीसई कोडिकोडिओ। नामगोत्ता उक्कोसा, अट्ठमुहुत्ता जहनिया ॥२३॥ सिद्धाणणन्तभागो य, अणुभागा हवन्ति उ । सव्वेसु वि पएसग्गं, सव्वजीवेसु इच्छियं ॥२४॥ तम्हा एएसि कम्मा अणुभागा वियाणिया। एए सि संवरे चेव, खवणे य जए बुहो ।।२५।। त्ति बेमि ॥ कम्मप्पयडी समत्ता ॥३३॥ ॥ अह लेलज्झयणं चीत्तीसइमं अज्झयणं ।। लेसज्झयणं पवक्खामि, आणुपुब्धि जहकम । छण्हंपि कम्मलेसाणं, अणुभावे सुणेह मे ॥१॥ नामाइं वरणरसगन्धफासपरिणामलक्खर । ठाणं ठिई गई चाउ, लेसा तु सुणेह मे ॥२॥ किण्हा नीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव य । सुक्कलेसा य छट्ठा य, नामाई तु जह कम ॥३।।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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