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________________ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला त्ति अज्झाइयां भवद्द, अप्पारां ठावइस्सामि त्ति अभाइयव्वं भवइ, ठिओ परं ठावइस्समि त्ति अज्झाइयव्वं भवइ, चउत्थ पयं भवइ । भवइ य एत्थ सिलोगो: ५० नामेगग्गचित्तो य ठिम्रो य ठावइ परं । सुयाणि य अहिज्जित्ता र सुयसमाहिए || ३॥ चविवहा खलु तवसमाही भवइ, तं जहा -नो इहलोगट्टयाए तवम हिट्टेजा, नो परलो गट्टयाए तवमहिद्वेजा, नो कित्तिवरणसद्द सिलोगट्टयाए तवमहिडेजा, नन्नत्थ निज्जरट्टयाए तवमहिजा चउत्थं पयं भवइ । भवइ य एत्थ सिलोगो:विविहगुणतवोरए य निच्च भवइ निरासए निज्जरट्ठिए । तवसा धुणइ पुराणपावगं जुत्तो सया तवसमाहिए || ४ || अज्झयण९-४ चव्विा खलु आयारसमाही भवद्द, तं जहा - नो इहलोगट्टयाए आयाम हिडेजा, नो परलोगट्टयाए श्रायारम हिट्ठेजा नो कित्तिवरण सह सिलोगट्टयाए श्रयारम हिडेजा, नन्नत्थ अरहन्तेहिं हेऊहिं श्रयारमहिंद्वेजा नउत्थं पयं भवइ । भवइ य एत्थ सिलोगो: जिणवयणरए अर्तितणे पडिपुराणाययमाययट्टिए । यारसमाहिसंवुडे भवइ य देते भावसंघ ||५|| अभिगम उरो समाहिश्रो सुविसुद्ध सुसमाहिप्पो । विउलहियं सुहावहं पुणे कुव्वइ सो पखेपण || ६ ||
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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